बचपन की पहली साईकल
बचपन की पहली साईकल🚲
- - - - - - - - - - - - - - - - - - -
बाबा आदम के जमाने की
डबल डंडी वाली रैले
जिसे चलाते थे मेरे स्थूलकाय पिता,
मैं आशंकाओं से ग्रस्त अक्सर सोचता कि कही पिताजी की धोती पैडल या चैन में फंस जाए
और पिताजी साइकिल से गिर ना पड़े।
घर के रेंगान में शान से खड़ी रहती थी।
कोई पड़ोसी साइकिल माँगने आता तो ,
साइकिल की डीलडौल देखकर
"भइगे रहे दे महाराज"कहकर वापस लौट जाता।
एक दिन पिताजी उस कृष्णवर्णी बलिष्ठ द्विचक्रवाहिनी को लेकर निकले लेकिन वापस आये ,
निराश , उदास और हताश ।
"बेच दिया जी 🥲 सत्तर रुपये में कुलवंत सरदार को"।
बहुत गीले स्वर में बोले पिताजी
जैसे कोई लोहे की निर्जीव चीज नहीं ,
बल्कि बेच आये हो कोई जीती जागती चीज।
🖊️ #by mahesh pandey ji.
Bhai tare iss sare blog ko kisi kitab ma banao achhi hai
जवाब देंहटाएं